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अपना सा मुँह लेकर रह जाना: मोंटू बंदर की फनी जंगल स्टोरी और सीख

बच्चों के लिए "अपना सा मुँह लेकर रह जाना" मुहावरे पर आधारित जंगल की नई कहानी। जानिए कैसे मोंटू बंदर की शेखी उसे भारी पड़ी। एक मजेदार और शिक्षाप्रद लेख।

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बच्चों, क्या आपने कभी "अपना सा मुँह लेकर रह जाना" मुहावरे का नाम सुना है? इसका मतलब होता है—जब हम बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बातें करते हैं या किसी काम को लेकर बहुत घमंड दिखाते हैं, लेकिन अंत में असफल हो जाते हैं और हमें शर्मिंदा होना पड़ता है। आज हम जंगल के एक ऐसे ही शरारती बंदर की कहानी सुनेंगे, जिसने उड़ने की कोशिश की और अंत में उसका क्या हाल हुआ, यह पढ़कर आपको बहुत मजा आएगा।


कहानी: मोंटू बंदर और 'केले के पत्तों' वाला हवाई जहाज

चंपकवन नाम का एक बहुत ही सुंदर और घना जंगल था। उस जंगल में जानवरों की एक बड़ी बस्ती थी। वहां Wikipedia: बंदर प्रजाति का एक मोंटू नाम का बंदर रहता था। मोंटू था तो बहुत फुर्तीला, लेकिन उसे अपनी अकल पर बहुत घमंड था। उसे लगता था कि वो जंगल का सबसे स्मार्ट जानवर है।

मोंटू की बड़ी-बड़ी बातें

एक दिन मोंटू नदी किनारे पेड़ पर बैठा जामुन खा रहा था। तभी उसने आसमान में एक चील को उड़ते हुए देखा। मोंटू ने सोचा, "अरे! यह उड़ना तो बहुत आसान काम है। बस हाथ-पैर ही तो हिलाने हैं। ये पक्षी तो नाहक ही भाव खाते हैं।"

उसने नीचे खड़े गज्जू हाथी से कहा, "ओ गज्जू काका! देखना, कल मैं भी इन पक्षियों की तरह हवा में उड़कर दिखाऊंगा। मैं जंगल का पहला 'उड़ने वाला बंदर' बनूंगा!"

गज्जू हाथी ने अपनी सूंड हिलाई और समझाया, "मोंटू बेटा, जिसका काम उसी को साजे। बंदरों का काम पेड़ों पर कूदना है, आसमान में उड़ना नहीं। कुदरत के नियमों से पंगा मत लो।"

लेकिन मोंटू कहां सुनने वाला था? उसने ताना मारते हुए कहा, "काका, आप तो बस जमीन पर भारी शरीर लेकर चलो, मैं तो कल बादलों की सैर करूंगा।"

उड़ने की तैयारी और जंगल में शोर

अगले दिन सुबह-सुबह मोंटू ने जंगल में ढिंढोरा पिटवा दिया कि वो 'बरगद की पहाड़ी' से उड़ान भरने वाला है। उसने अपनी योजना के मुताबिक, केले के दो बड़े-बड़े पत्ते लिए और उन्हें लताओं (creepers) से अपने दोनों हाथों पर कसकर बांध लिया। उसे लगा कि ये पत्ते पंखों का काम करेंगे।

पूरा जंगल तमाशबीन बनकर पहाड़ी के नीचे जमा हो गया। लोमड़ी, खरगोश, हिरण और भालू—सब मोंटू का कारनामा देखने आए थे। किसी को चिंता थी, तो कोई मोंटू की बेवकूफी पर हंस रहा था।

हवा में छलांग और... धड़ाम!

मोंटू पहाड़ी की सबसे ऊंची चट्टान पर खड़ा हो गया। उसने अपने 'केले वाले पंख' फैलाए और जोर से चिल्लाया, "देखो दुनिया वालों! अब मैं उड़ूंगा!"

मोंटू ने पूरी ताकत से हवा में छलांग लगा दी। उसने अपने हाथों को पक्षियों की तरह फड़फड़ाना शुरू किया। लेकिन विज्ञान (Science) तो विज्ञान है! केले के पत्ते पंख नहीं बन सकते थे। गुरुत्वाकर्षण (Gravity) ने अपना काम किया।

मोंटू ऊपर जाने की बजाय, सीधा नीचे की तरफ गिरा—सन्न करता हुआ!

किस्मत अच्छी थी कि पहाड़ी के ठीक नीचे कीचड़ से भरा एक छोटा सा तालाब था।

धड़ाम!!!

मोंटू सीधा कीचड़ में जा गिरा। उसके केले के पत्ते फटकर बिखर गए और उसका पूरा शरीर काली मिट्टी और कीचड़ से सन गया। उसका मुंह कीचड़ में सना हुआ था और सिर्फ दो आंखें चमक रही थीं।

अपना सा मुँह लेकर रह गया मोंटू

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जैसे ही मोंटू कीचड़ से बाहर निकला, सारे जानवर जोर-जोर से हंसने लगे।

सोनू तोता बोला, "क्यों मोंटू भाई? बादलों का स्वाद कैसा था? या कीचड़ का स्वाद ज्यादा अच्छा लगा?"

लोमड़ी ने हंसते हुए कहा, "लगता है मोंटू की फ्लाइट की लैंडिंग थोड़ी गलत हो गई!"

मोंटू, जो कल तक बड़ी-बड़ी डींगे हांक रहा था, अब शर्म के मारे किसी से नज़रें नहीं मिला पा रहा था। उसका घमंड चकनाचूर हो चुका था। गज्जू हाथी ने उसे सूंड से पकड़कर बाहर निकाला। मोंटू चुपचाप, सिर झुकाए, बिना किसी से कुछ बोले वहां से भाग गया।

उस दिन मोंटू सचमुच "अपना सा मुँह लेकर रह गया।"


कहानी से सीख (Moral of the Story)

बच्चों, इस कहानी से हमें तीन बहुत महत्वपूर्ण बातें सीखने को मिलती हैं:

  1. झूठा घमंड नहीं करना चाहिए: हमें कभी भी उन चीजों का दिखावा नहीं करना चाहिए जो हम नहीं कर सकते।

  2. प्रकृति का सम्मान: हर जीव की अपनी खासियत होती है। मछली तैर सकती है, पक्षी उड़ सकते हैं और बंदर कूद सकते हैं। हमें दूसरों की नकल करने के बजाय अपनी खूबियों को निखारना चाहिए।

  3. बड़ों की सलाह: अगर मोंटू ने गज्जू हाथी की बात मान ली होती, तो आज पूरे जंगल के सामने उसका मजाक नहीं उड़ता।

 तो दोस्तों, अगली बार जब भी आपका कोई दोस्त बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बात करे और फिर काम न कर पाए, तो आपको मोंटू बंदर की याद जरूर आएगी। "अपना सा मुँह लेकर रह जाना" मुहावरा हमें याद दिलाता है कि कथनी (बोलने) से ज्यादा करनी (करने) में विश्वास रखना चाहिए।

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